Stories Of Premchand
17: जयशंकर प्रसाद की लिखी कहानी पत्थर की पुकार, Patthar Ki Pukaar - Story Written By Jaishankar Prasad
- Autor: Vários
- Narrador: Vários
- Editor: Podcast
- Duración: 0:04:57
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Sinopsis
नवल और विमल दोनों बात करते हुए टहल रहे थे। विमल ने कहा- ‘‘साहित्य-सेवा भी एक व्यसन है।’’ ‘‘नहीं मित्र! यह तो विश्व भर की एक मौन सेवा-समिति का सदस्य होना है।’’ ‘‘अच्छा तो फिर बताओ, तुमको क्या भला लगता है? कैसा साहित्य रुचता है?’’ ‘‘अतीत और करुणा का जो अंश साहित्य में हो, वह मेरे हृदय को आकर्षित करता है।’’ नवल की गम्भीर हँसी कुछ तरल हो गयी। उन्होंने कहा-‘‘इससे विशेष और हम भारतीयों के पास धरा क्या है! स्तुत्य अतीत की घोषणा और वर्तमान की करुणा, इसी का गान हमें आता है। बस, यह भी एक भाँग-गाँजे की तरह नशा है।’’ विमल का हृदय स्तब्ध हो गया। चिर प्रसन्न-वदन मित्र को अपनी भावना पर इतना कठोर आघात करते हुए कभी भी उसने नहीं देखा था। वह कुछ विरक्त हो गया। मित्र ने कहा-‘‘कहाँ चलोगे?’’ उसने कहा-‘‘चलो, मैं थोड़ा घूम कर गंगा-तट पर मिलूँगा।’’ नवल भी एक ओर चला गया। चिन्ता में मग्न विमल एक ओर चला। नगर के एक सूने मुहल्ले की ओर जा निकला। एक टूटी चारपाई अपने फूटे झिलँगे में लिपटी पड़ी है। उसी के बगल में दीन कुटी फूस से ढँकी हुई, अपना दरिद्र मुख भिक्षा के लिए खोले हुए बैठी है। दो-एक ढाँकी और हथौड़े, पानी की प्याली, कूची, दो काले